सोनी - Soni


जब मैं अपने लबों के गुलाब तेरे कानों में रखकर
तुझे आवाज़ दूंगा सोनी, सोनी
तेरी मदहोश पलकें उठेंगी तो फलक पर सूरज अंगडाई लेगा
और किरणें बेताब हो जाएंगी तेरे खुदाई जिस्म से नहाने को

जब मेरे लबों की चहकती शरारतें 
तेरे सोंधे तन से टकराएंगी
तो पत्ते कांप के सर्सरायेंगे और वो 
निथरी ओंस जिसे सजा के बैठे थे माथे पे
झरझरा के समा जायेगी तेरे हुस्न के सजदे में

जमीं पर जब तेरे निथरे कदम पड़ेंगें सोनी
दरख्तों पर उंघते परिंदे जागेंगे तेरी आहट से
अपने सिकुड़े पंखों की शिकन मिटा चल पड़ेंगे परवाज़ लेने 
कायनात चलने लगेगी तेरे एक इशारे पर

जब नींद से छलकती तेरी पलकें झुकेंगी
तो शाम हो जायेगी जमीं पर
जुगनू जल उठेंगे दूधिया उजाला लिए
चाँद गश्त करता रहेगा जब तक
जब तक नये सवेरे में फिर
अपने लबों के गुलाब तेरे कानों में रखकर
फिर मैं तुझे आवाज़ दूंगा सोनी, सोनी

photo credit: Flat White Guy Random stranger via photopin (license)

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